
पार्टी के इस फैसले की झलक हाल ही में मऊगंज में घोषित हुई जिला कार्यकारिणी में भी देखने को मिली। वहां पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व देवतालाब विधायक गिरीश गौतम के बेटे राहुल गौतम को जिला उपाध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन जैसे ही मामला प्रदेश नेतृत्व तक पहुंचा, तुरंत हस्तक्षेप किया गया। “एक परिवार, एक पद” के फॉर्मूले के मुताबिक राहुल गौतम ने खुद ही उपाध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला लिया और प्रदेश अध्यक्ष को पत्र लिखकर यह पद अन्य कार्यकर्ता को सौंपने का अनुरोध किया।
बीजेपी का मानना है कि इस नीति से संगठन में वर्षों से मेहनत करने वाले सामान्य कार्यकर्ताओं को भी पद पाने का अवसर मिलेगा। साथ ही, पार्टी में पारदर्शिता और निष्पक्षता बढ़ेगी, जिसका सीधा असर जमीनी ताकत और कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ेगा। यह फैसला उन नेताओं के लिए बड़ी चुनौती है, जो वर्षों से अपने परिजनों को पार्टी पदों पर लाने की कोशिश करते रहे हैं।
“एक परिवार, एक पद” फॉर्मूला लागू करने का जिम्मा राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष ने हाल ही में भोपाल दौरे में पार्टी नेतृत्व को सौंपा था। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, नीति का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ संगठन कड़ी कार्रवाई करेगा।
बीजेपी के इस नए कदम को पार्टी की बदली राजनीति और संगठनात्मक मजबूती की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें इस बात पर हैं कि यह नीति कितनी दृढ़ता से लागू होती है और पार्टी में स्थायी बदलाव लाने में कितनी कारगर साबित होती है।