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25% जनता ढूंढ रही तीसरा विकल्प 10 साल में JDU की 62% सीटें घटीं

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नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के लिए इस बार का बिहार चुनाव एक निर्णायक मोड़ है। यह उनके और उनकी पार्टियों के राजनीतिक भविष्य की लड़ाई है। जीत उन्हें प्रासंगिक बनाए रखेगी, जबकि हार उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए खतरा बन सकती है। ऐसा क्यों है

JDU में नीतीश के बाद कोई लोकप्रिय नेता नहीं

पिछले 22 सालों से, जनता दल (यूनाइटेड) यानी JDU की पहचान नीतीश कुमार से ही जुड़ी हुई है। वह पार्टी का इकलौता चेहरा रहे हैं, जिनकी पकड़ पूरे बिहार में है। हालांकि, कुछ नेता दूसरे नंबर तक जरूर पहुंचे, लेकिन वे भी लंबे समय तक टिक नहीं पाए।इन्हीं में से एक नाम रामचंद्र प्रसाद सिंह (RCP) का है। एक पूर्व IAS अधिकारी, RCP 2010 में JDU में शामिल हुए और जल्दी ही नीतीश के बेहद करीबी बन गए। उन्हें 'नीतीश का आंख, कान और नाक' कहा जाता था। 2020 में, वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने। हालांकि, दो साल बाद ही दोनों के रिश्ते में दरार आ गई और RCP ने JDU छोड़ दी। बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए और अब जन सुराज अभियान का हिस्सा हैं।प्रशांत किशोर (PK), जिन्होंने 2015 में नीतीश के साथ मिलकर महागठबंधन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, भी एक समय नीतीश के काफी करीब माने जाते थे। तब यह भी चर्चा थी कि नीतीश के बाद वही JDU का चेहरा होंगे, लेकिन बाद में उन्होंने भी पार्टी से दूरी बना ली।कोइरी समुदाय से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश के करीबी रहे हैं, लेकिन बाद में उन्होंने भी अपनी अलग पार्टी बना ली। बता दें, कोइरी समुदाय को नीतीश का खास वोट बैंक माना जाता है।पिछले साल, पूर्व IAS अधिकारी मनीष वर्मा का नाम भी नीतीश के संभावित उत्तराधिकारी के तौर पर उभरा था। वर्मा भी उसी कुर्मी समुदाय से आते हैं, जिससे नीतीश हैं। हालांकि, वह पार्टी में तो हैं, लेकिन महत्वपूर्ण फैसलों से दूर हैं।

कोर वोटर्स का साथ नहीं, बड़े नेताओं की कमी

नीतीश कुमार के अलावा, JDU में चार प्रमुख नेता हैं: केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह (ललन सिंह), राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, विजय कुमार चौधरी, और अशोक चौधरी।इनमें से ललन सिंह और विजय चौधरी भूमिहार हैं, संजय झा ब्राह्मण हैं, और अशोक चौधरी दलित हैं। जबकि, JDU का मुख्य वोट बैंक कुर्मी, कोइरी, और अति पिछड़ा (EBC) समुदाय है।इन तीनों समुदायों की आबादी बिहार की कुल आबादी का करीब 43% है, जिसमें अकेले EBC की हिस्सेदारी 36% है।इसका मतलब साफ है कि पार्टी के ये चारों बड़े नेता JDU के मुख्य वोट बैंक से नहीं आते। इस वजह से वे कुर्मी-कोइरी और अति पिछड़ा समीकरण में पूरी तरह से फिट नहीं बैठते।

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JDU की 62% सीटें घटीं, वोट शेयर में भी गिरावट

पिछले 10 सालों में जनता दल (यूनाइटेड) यानी JDU की सीटों और वोट शेयर दोनों में भारी गिरावट आई है।

  • 2010: JDU को 115 सीटें मिलीं।
  • 2015: सीटें घटकर 71 रह गईं।
  • 2020: सीटों की संख्या और कम होकर 43 हो गई।

इस तरह, 10 सालों में JDU की सीटों में 72 की कमी आई है, जो कि 62% की गिरावट हैसीटों के साथ-साथ पार्टी का वोट शेयर भी लगातार घटा है:

  • 2010: 22.6%
  • 2015: 17.3%
  • 2020: 15.7%

यानी, एक दशक में वोट शेयर में करीब 5% की गिरावट दर्ज की गई है।

JDU के वोटर्स RJD की ओर क्यों गए?

जब नीतीश कुमार का ग्राफ गिर रहा था, तो उनके वोटर्स का झुकाव राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की तरफ हुआ।

  • 2010 में RJD को 22 सीटें और 18.84% वोट मिले थे।
  • 2020 में यह आंकड़ा 75 सीटों और 23% वोट शेयर तक पहुंच गया।

इसका मतलब है कि RJD की सीटों में 52 की वृद्धि हुई और वोट शेयर 3% से ज्यादा बढ़ गया। विशेषज्ञों का मानना है कि नीतीश के कई समर्थक RJD से जुड़ गए, जिससे RJD मजबूत हुई।

नाव हारने पर पार्टी के अस्तित्व पर खतरा

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि नीतीश कुमार इस चुनाव में सत्ता गंवाते हैं, तो उनकी पार्टी JDU का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। JDU में कई नेता ऐसे हैं जिनकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं। नीतीश के कमजोर होने पर वे किसी दूसरे मजबूत चेहरे के साथ जा सकते हैं, जिससे पार्टी में टूट-फूट हो सकती है।इसी साल जुलाई में 'बिहार बदलाव यात्रा' के दौरान, प्रशांत किशोर ने दावा किया था, "नवंबर के बाद न तो नीतीश मुख्यमंत्री रहेंगे और न ही JDU नाम की कोई पार्टी बचेगी। जब कोई कमजोर पड़ता है, तो ताकतवर उस पर कब्जा कर लेता है। उसी तरह JDU का दफ्तर भी बीजेपी का हो जाएगा।"

कमजोर हुए नीतीश तो बीजेपी बना सकती है अपना मुख्यमंत्री

बिहार हिंदी भाषी राज्यों में एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां अब तक बीजेपी का कोई मुख्यमंत्री नहीं बना है। सियासी गलियारों में अक्सर यह चर्चा होती रहती है कि चुनाव के बाद बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। इस बात को तब और बल मिला, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जून में एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि चुनाव के बाद बिहार के मुख्यमंत्री का नाम तय होगा। हालांकि, बाद में बीजेपी ने स्पष्ट किया कि नीतीश कुमार ही बिहार में NDA का चेहरा हैं।वरिष्ठ पत्रकार संजय का कहना है, "पिछली बार जब नीतीश कुमार कम सीटें जीते थे, तो वह मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे। लेकिन बीजेपी ने उन्हें जबरन बनाया। इस बार अगर वे बराबर सीटें भी जीतते हैं, तो पद छोड़ सकते हैं। जीतने पर पूरी संभावना है कि बीजेपी का ही कोई मुख्यमंत्री होगा।"

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नीतीश के बेटे निशांत के राजनीति में आने की चर्चा

सियासी गलियारों में यह चर्चा गर्म है कि नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार राजनीति में कदम रख सकते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि पार्टी को टूटने से बचाने के लिए उन्हें JDU में शामिल होना चाहिए। हालांकि, फिलहाल ये बातें दूर की कौड़ी लगती हैं क्योंकि निशांत राजनीति में सक्रिय नहीं हैं और नीतीश कुमार भी उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपने साथ नहीं रखते।इसी महीने 3 सितंबर को, JDU के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने एक इंटरव्यू में साफ कर दिया कि फिलहाल निशांत कुमार राजनीति में नहीं आ रहे हैं।वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह बताते हैं, "नीतीश कुमार के करीबी लोगों ने पार्टी को बचाने के लिए निशांत कुमार को आगे लाने की योजना बनाई थी, लेकिन निशांत ने खुद ही राजनीति में आने से इनकार कर दिया। नीतीश कुमार भी उनके नाम पर सहमत नहीं हैं।"

 


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