एससीओ में अज़रबैजान की एंट्री रोकने का आरोप, पाकिस्तान से संबंधों का बताया कारण।अज़रबैजान और पाकिस्तान के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। अज़रबैजान ने कई मौकों पर, खासकर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया है। इसके अलावा, हाल ही में 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान भी अज़रबैजान ने पाकिस्तान को खुलकर समर्थन दिया था, जिसने भारत और
ज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने दावा किया है कि भारत, पाकिस्तान के साथ अज़रबैजान के करीबी संबंधों के कारण वैश्विक मंचों पर बदला ले रहा है। यह आरोप उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात के दौरान लगाया।अज़रबैजान की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारत ने एससीओ की पूर्ण सदस्यता के लिए अज़रबैजान के आवेदन को खारिज कर दिया है। इसके पीछे मुख्य कारण पाकिस्तान के प्रति अज़रबैजान का झुकाव बताया गया है। मई में 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान अज़रबैजान ने पाकिस्तान को खुलकर समर्थन दिया था, जिसने भारत और अज़रबैजान के बीच तनाव को बढ़ाया।
राष्ट्रपति अलीयेव ने स्पष्ट किया कि भारत के इस रवैये के बावजूद उनका देश पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता देना जारी रखेगा।

भारतीय सेना द्वारा 6-7 मई की रात पाकिस्तान में चलाए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद अजरबैजान ने पाकिस्तान का समर्थन किया। यह ऑपरेशन जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के जवाब में किया गया था, जिसमें भारत ने पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया।इस ऑपरेशन के बाद, अजरबैजान ने भारत के इस कदम की आलोचना करते हुए खुले तौर पर पाकिस्तान का साथ दिया। दोनों देशों के बीच तनाव कम होने के बाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अजरबैजान का दौरा किया। इस दौरे में उनके साथ सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर, उप-प्रधानमंत्री इशाक डार और सूचना मंत्री अताउल्लाह तरार भी शामिल थे।
इस मुलाकात के दौरान, शहबाज शरीफ ने सैन्य संघर्ष के समय पाकिस्तान को समर्थन देने के लिए अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव का आभार व्यक्त किया।
मई में, भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन सिंदूर' नामक एक जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। यह कार्रवाई जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक आतंकी हमले के जवाब में की गई थी।इस ऑपरेशन के बाद, अज़रबैजान ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया और भारत के इस कदम की आलोचना की। इसके कुछ समय बाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपने सैन्य प्रमुख और अन्य वरिष्ठ मंत्रियों के साथ अज़रबैजान का दौरा किया। इस दौरान, उन्होंने भारत के साथ हुए सैन्य संघर्ष में पाकिस्तान का साथ देने के लिए अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव का आभार व्यक्त किया।

कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन: भारत-अज़रबैजान रिश्तों में तनाव
अज़रबैजान, पाकिस्तान और तुर्किये के साथ अपने करीबी संबंधों के कारण भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते साझा करता है। अज़रबैजान का उसके पड़ोसी देश आर्मेनिया के साथ नागोर्नो-कराबाख क्षेत्र को लेकर लंबे समय से विवाद है। इस विवाद में पाकिस्तान और तुर्किये ने अज़रबैजान को सैन्य और राजनयिक समर्थन दिया है। इसके बदले में, अज़रबैजान ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया है।
जुलाई 2024 में, अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने पाकिस्तान दौरे के दौरान कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित हनन का मुद्दा उठाया, जिसे भारत ने अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप माना।

आर्मेनिया-भारत रक्षा सहयोग
इस तनाव के जवाब में, भारत ने आर्मेनिया के साथ अपने रक्षा सहयोग को मजबूत किया है। जुलाई 2023 में, भारत ने आर्मेनिया को पिनाक मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम की पहली खेप भेजी। इस डिलीवरी के तुरंत बाद, अज़रबैजान के राष्ट्रपति के सलाहकार हिकमत हाजियेव ने भारत के राजदूत से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग पर चिंता व्यक्त की।
चीन ने अज़रबैजान का किया समर्थन
चीन ने अज़रबैजान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की पूर्ण सदस्यता दिलाने के लिए समर्थन जताया है। हाल ही में एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव के साथ एक बैठक में इसकी घोषणा की। वर्तमान में, अज़रबैजान एससीओ का "डायलॉग पार्टनर कंट्री" है।
एससीओ और सदस्यता प्रक्रिया
एससीओ एक महत्वपूर्ण यूरेशियाई संगठन है जो क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और राजनीतिक समन्वय को बढ़ावा देता है। इसके पूर्ण सदस्य देशों में भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और ईरान शामिल हैं। भारत ने 2005 में एक पर्यवेक्षक के रूप में इसमें शामिल होकर, 12 जून 2017 को कजाकिस्तान के अस्ताना में पूर्ण सदस्यता हासिल की।एससीओ की सदस्यता पाने के लिए, किसी भी देश को सबसे पहले ऑब्जर्वर या डायलॉग पार्टनर बनना होता है। इसके बाद, उन्हें पूर्ण सदस्यता के लिए औपचारिक आवेदन करना पड़ता है। इस आवेदन की जाँच मौजूदा सदस्य देश करते हैं, जो देश की क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक नीतियों और सुरक्षा नीतियों का मूल्यांकन करते हैं। सदस्यता पर अंतिम निर्णय एससीओ शिखर सम्मेलन में लिया जाता है, जिसके लिए सभी सदस्य देशों की सर्वसम्मत सहमति आवश्यक है। यदि कोई एक भी सदस्य देश विरोध करता है, तो सदस्यता प्रक्रिया रुक सकती है।