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विशेषकर ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मार्च 2025 में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक गोपनीय पत्र भेजा था। इस पत्र में जिनपिंग ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सख्त व्यापार नीतियों और टैरिफ (शुल्क) को लेकर चिंता व्यक्त की थी।रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने चीन के खिलाफ एक बड़ा व्यापार युद्ध छेड़ रखा था, जिसमें भारी टैरिफ लगाए गए थे। इससे चीन की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ रहा था। जिनपिंग ने इस स्थिति में भारत से सहयोग और संबंधों को सुधारने की संभावनाएं तलाशने की कोशिश की।पत्र में जिनपिंग ने यह भी कहा कि भारत और अमेरिका के बीच होने वाले संभावित व्यापार समझौते चीन के हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। चीन ने महसूस किया कि अमेरिका भारत को अपने साथ मिलाकर चीन के खिलाफ एक मोर्चा बनाना चाहता है।इस कथित पत्र के बाद, दोनों देशों के बीच बदलते संबंधों को देखा गया। इस गुप्त कूटनीति ने भारत और चीन को फिर से बातचीत की मेज पर आने का मौका दिया। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन दौरे का मार्ग प्रशस्त हुआ।प्रधानमंत्री मोदी का पहला उच्च-स्तरीय दौरा होगा। यह दौरा इस बात का संकेत है कि दोनों देश अपने सीमा विवादों के बावजूद संबंधों में सुधार लाने के लिए उत्सुक हैं।

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भारतीय अधिकारी के हवाले से दावा किया गया है कि यह पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भी पहुँचाया गया था। इसका मकसद यह आकलन करना था कि क्या चीन के साथ रिश्ते बेहतर बनाने की कोई संभावना है। इस चिट्ठी में चीन ने मुख्य रूप से दो बातें कही थीं चीन ने इस बात पर चिंता जताई थी कि भारत और अमेरिका के बीच होने वाले संभावित समझौते चीन के हितों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।पत्र में यह भी लिखा गया था कि चीन की ओर से एक प्रांतीय अधिकारी संबंधों में सुधार की कोशिशों का नेतृत्व करेगा।

अमेरिका से भारत की नाराजगी

ब्लूमबर्ग के अनुसार, जून तक भारत ने चीन के इस पत्र पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया था, लेकिन इसी दौरान भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक बातचीत में तनाव बढ़ गया। इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत दो बातों से खासकर नाराज़ था:

  1. ट्रंप का दावा: तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया है, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। भारत ने इसे अपनी संप्रभुता पर हमला और अपनी स्थिति को कमजोर करने की कोशिश माना।
  2. टैरिफ में वृद्धि: इसके बाद, अमेरिका ने भारत पर 50% तक का टैरिफ लगा दिया, जिससे दोनों देशों के संबंधों में असंतोष और तनाव और बढ़ गया।

इन घटनाओं के बाद, भारत ने चीन की ओर से आई पहल का गंभीरता से जवाब देना शुरू किया।

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मोदी का चीन दौरा और आगे की राह

इन परिस्थितियों के बाद, भारत और चीन ने 2020 के गलवान संघर्ष के बाद भी सीमा विवाद को हल करने की कोशिशों को दोगुना करने पर सहमति जताई। इसके फलस्वरूप, अब प्रधानमंत्री मोदी सात साल बाद चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। वे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे, जहाँ उनकी मुलाकात जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से होगी। अमेरिका इस मुलाकात को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मान रहा है, क्योंकि यह उसके लिए चिंता का विषय बन सकता है।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार हो रहा है, जिसकी एक बड़ी वजह अमेरिका की व्यापार नीतियां हैं। जुलाई में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बीजिंग का दौरा किया और अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मिले। यह पाँच सालों में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की पहली मुलाकात थी।अपनी यात्रा के दौरान, विदेश मंत्री जयशंकर ने चीन से व्यापार पर लगे प्रतिबंध हटाने और सप्लाई चेन को बाधित करने वाली नीतियों को खत्म करने का आग्रह किया। चीन ने इस दौरान भारत को उर्वरक और दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने का वादा किया। यह मुलाकात दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक संबंधों को फिर से पटरी पर लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।

भारतीय कंपनियों की चीनी कंपनियों से साझेदारी

रिपोर्ट के अनुसार, भारत और चीन के व्यापारिक समुदाय भी इस सुधरते रिश्ते का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए:

  • अडानी समूह: यह समूह चीन की इलेक्ट्रिक वाहन दिग्गज कंपनी BYD के साथ भारत में बैटरी उत्पादन शुरू करने के लिए साझेदारी पर विचार कर रहा है।
  • रिलायंस और JSW समूह: ये दोनों भारतीय समूह भी चीनी कंपनियों के साथ गुप्त समझौते कर रहे हैं।

    अमेरिका पर पड़ रहा असर

    ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत और चीन की यह बढ़ती नजदीकी सीधे तौर पर अमेरिका को प्रभावित कर रही है। पिछले कुछ दशकों में, अमेरिका लगातार भारत को अपने साथ मिलाकर चीन का मुकाबला करना चाहता था, लेकिन ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने से स्थिति बदल गई। इस फैसले से मोदी सरकार हैरान थी और उसने चीन की ओर रुख करना शुरू कर दिया।अमेरिकी थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के विशेषज्ञ एशले टेलिस ने इस स्थिति पर तंज कसते हुए कहा कि "ट्रम्प असली शांतिदूत निकले, जिन्होंने भारत और चीन को करीब ला दिया, क्योंकि उन्होंने भारत को दुश्मन की तरह ट्रीट किया।" यह टिप्पणी इस बात को दर्शाती है कि अमेरिका की व्यापार नीतियों ने अनजाने में ही सही, भारत और चीन को एक-दूसरे के करीब ला दिया है।

 


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