नवरात्रि के दौरान जहां पूरे देश के गरबा पंडालों में भक्ति और उल्लास छाया हुआ है, वहीं मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित केंद्रीय भैरवगढ़ जेल में भी माता की आराधना का एक अनूठा दृश्य देखने को मिल रहा है।जेल में बंद हत्या, लूट, बलात्कार जैसे गंभीर मामलों के आरोपी कैदी भी नवरात्रि के उपवास रख रहे हैं और गरबा कर रहे हैं।
- जेल में पुरुष और महिला कैदी अपने-अपने बैरकों में हर दिन डेढ़ घंटे तक गरबा खेलते हैं।
- कुल 682 कैदी उपवास पर हैं। इनमें से कुछ कैदी केवल जल ग्रहण कर रहे हैं, जबकि अन्य फलाहार ले रहे हैं।
यह जेल के भीतर कैदियों की आस्था और आत्म-सुधार की दिशा में उनके प्रयास को दर्शाता है।

भैरवगढ़ जेल अधीक्षक मनोज साहू के अनुसार, जेल में गरबा आयोजन की शुरुआत पिछले साल की गई थी। इस वर्ष भी जेल परिसर के भीतर माता की मूर्ति स्थापित की गई है और उसे फूलों से सजाया गया है।
यह आयोजन जेल के सख्त माहौल में भी भक्ति का माहौल पैदा करता है:
- शाम 6 बजे रोजाना आरती की जाती है।
- आरती के बाद कैदी शाम 7:30 बजे तक गरबा खेलते हैं।
- इस आयोजन में सभी आयु वर्ग के कैदी हिस्सा लेते हैं।
गरबा खेलने के लिए कैदी एक खास वेशभूषा अपनाते हैं—वे सफेद कपड़े और सफेद टोपी पहनकर शामिल होते हैं।
इस विशेष नवरात्रि आयोजन को खास बनाने के लिए, जेल प्रशासन ने एक अनूठा कदम उठाया है: जेल के अंदर ही एक लाइव म्यूजिकल बैंड का गठन किया गया है।
- इस बैंड में कैदी ही संगीत वाद्ययंत्र जैसे ड्रम, ढोलक, सिंथेसाइज़र और ऑक्टोपेड बजाते हैं।
- यह गरबा पूरी तरह से लाइव संगीत पर आधारित होता है।
कैदी भक्तिभाव में डूबकर माता के भजन गाते हैं और संगीत की इन्हीं धुनों पर गरबा करते हुए नाचते हैं।
जेल प्रशासन ने इस पहल से जेल के भीतर का पूरा माहौल भक्तिमय और सकारात्मक बना दिया है।
जेल अधीक्षक के अनुसार, भैरवगढ़ जेल में बंद कुल 2,100 कैदियों में से 682 कैदी उपवास पर हैं, जिनमें पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं।
इन कैदियों की आस्था का स्वरूप इस प्रकार है:
- ये कैदी पूरी भक्ति-भाव से माता की पूजा, आरती और पाठ कर रहे हैं।
- कुछ कैदी पूरे नौ दिन का उपवास रखते हैं, जबकि कुछ अन्य केवल फलाहार या जल ग्रहण कर रहे हैं। जेल प्रशासन उनकी सुविधा के लिए नियमित रूप से फलाहार उपलब्ध करा रहा है।
अधीक्षक साहू ने बताया कि जेल में कई कुख्यात कैदी बंद हैं, लेकिन नवरात्रि के दौरान वे अपने गुनाहों की माफी और जीवन में सुधार की आशा के साथ माता का व्रत रख रहे हैं। यह उनकी समाज की मुख्यधारा में लौटने की इच्छा को दर्शाता है।