
नेपाल के जन-जी (Gen-Z) आंदोलन के दौरान देश की कई महत्वपूर्ण इमारतें और दस्तावेज नष्ट हो चुके हैं, जिसके कारण प्रधानमंत्री ने इसे "जीरो स्टेट" की स्थिति बताया है। आंदोलन में सिंह दरबार, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट सहित कई सरकारी और ऐतिहासिक इमारतों को आग के हवाले कर दिया गया। इन इमारतों में न सिर्फ संरचनाएं बल्कि महत्वपूर्ण दस्तावेज, रिकॉर्ड्स और न्यायिक केस भी राख हो गए हैं। इस वजह से नेपाल की प्रशासनिक, राजनीतिक और न्यायिक व्यवस्था को गहरा नुकसान पहुंचा है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि "न इमारतें बची हैं और न ही दस्तावेज"। Gen-Z आंदोलन युवाओं की नाराजगी और भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, सोशल मीडिया प्रतिबंध जैसे कारणों से भड़क उठा, जिसने नेपाल के राजनीतिक सिस्टम को भी हिला दिया है और सरकार को गिरा दिया है। यह आंदोलन युवा पीढ़ी की बगावत की एक जलती आग जैसा है, जिसने देश के कई हिस्सों को राख कर दिया है।

नेपाल में Gen-Z आंदोलन के मुख्य कारण
सोशल मीडिया बैन: नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे खासकर युवाओं में भारी नाराजगी और विरोध भड़क गया क्योंकि ये प्लेटफॉर्म युवाओं का प्रमुख संवाद और अभिव्यक्ति का माध्यम हैं।
भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद: नेपाल की राजनीतिक व्यवस्था में वर्षों से गहराती भ्रष्टाचार, नेतागिरी में परिवारवाद, सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग और जवाबदेही की कमी ने युवाओं में गहरा असंतोष और गुस्सा पैदा किया।
बेरोजगारी और महंगाई: युवा वर्ग को रोजगार के अवसरों की कमी, महंगाई और आर्थिक असमानता से निराशा का सामना करना पड़ रहा है, जो उनकी नाराजगी के प्रमुख कारण हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश: सोशल मीडिया प्रतिबंध को युवाओं ने अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना और इसे अन्य सामाजिक एवं राजनीतिक परेशानियों के साथ जोड़कर विरोध किया।
युवा पीढ़ी की राजनीतिक और सामाजिक चेतना: Gen-Z के सदस्य इंटरनेट व सोशल मीडिया के कारण वैश्विक मुद्दों व न्याय-समानता की जागरूकता से लैस हैं, जो उन्हें भ्रष्टाचार और दमन के खिलाफ सड़कों पर लाने वाली एक बड़ी वजह है।
बड़े घोटाले: पिछले कुछ वर्षों में हुए बड़े कोऑपरेटिव घोटालों ने सरकार के प्रति युवाओं का गुस्सा बढ़ाया है।
इस कारणों के संयोजन से युवाओं ने व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए, जिसका नेतृत्व Gen-Z पीढ़ी ने किया, और यह आंदोलन नेपाल के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में एक बड़े बदलाव के रूप में उभरा है।


नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली नौ दिनों तक सेना की सुरक्षा घेरे में रहने के बाद आखिरकार अपने निजी आवास पहुंच गए हैं। वह अब भक्तपुर जिले के गुंडु इलाके में स्थित एक घर में रहेंगे। बता दें कि 9 सितंबर को देश में आंदोलन उग्र होने पर ओली ने पद छोड़ दिया था। उसी समय उन्हें सेना ने हेलीकॉप्टर के जरिए सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया था। इस बीच, ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल संविधान दिवस के मौके पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है।
उधर, नेपाल की नई प्रधानमंत्री कार्की ने गुरुवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टेलीफोन पर वार्ता की। प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद यह उनकी किसी विदेशी नेता से पहली औपचारिक बातचीत मानी जा रही है।