collapse
...

भारत ने कहा- हमें पहले से जानकारी थी।

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रक्षा समझौता

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार को एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार, एक देश पर हमला दूसरे देश पर भी हमला माना जाएगा।सऊदी प्रेस एजेंसी के मुताबिक, दोनों देशों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि यह समझौता दोनों देशों की सुरक्षा बढ़ाने और दुनिया में शांति स्थापित करने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस समझौते के तहत, दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को भी बढ़ावा दिया जाएगा।रॉयटर्स के अनुसार, इस समझौते में सैन्य सहयोग शामिल है, और जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का उपयोग भी इसमें शामिल हो सकता है।इस समझौते पर, भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत सरकार को इसकी जानकारी पहले से ही थी।

ggbhgv.jpg

समझौते के दौरान पाकिस्तानी सेना प्रमुख की मौजूदगी

इस रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ सेना प्रमुख आसिम मुनीर, उप प्रधानमंत्री इशाक डार, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ, वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब और एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी सऊदी अरब में मौजूद था।जिस समय यह समझौता हुआ, उस वक्त पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर भी वहां उपस्थित थे।एक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि यह समझौता किसी विशेष देश या घटना के खिलाफ नहीं है, बल्कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे गहरे सहयोग को आधिकारिक रूप देता है।

hjvjh.jpg

पाकिस्तान का NATO जैसी फोर्स बनाने का सुझाव

9 सितंबर को इजराइल ने कतर की राजधानी दोहा में हमास के प्रमुख खलील अल-हय्या पर हमला किया था। इस हमले में अल-हय्या बच गए थे, लेकिन 6 अन्य लोगों की जान चली गई थी।इस घटना के बाद, 14 सितंबर को दोहा में कई मुस्लिम देशों के नेता इजराइल के खिलाफ एक विशेष बैठक के लिए एकत्र हुए। इसी बैठक में, पाकिस्तान ने सभी इस्लामिक देशों को एक NATO जैसी संयुक्त फोर्स बनाने का सुझाव दिया था।पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री मोहम्मद इशाक डार ने एक संयुक्त रक्षा बल बनाने की संभावना का उल्लेख करते हुए कहा था कि पाकिस्तान, जो एक परमाणु शक्ति है, इस्लामिक समुदाय के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएगा।

chgchg.jpg

विशेषज्ञों की राय: क्या यह सिर्फ एक समझौता है?

अमेरिका के पूर्व राजदूत जलमय खलीलजाद, जो अफगानिस्तान और इराक में सेवा दे चुके हैं, ने इस समझौते पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह भले ही कोई औपचारिक 'संधि' (treaty) न हो, लेकिन इसकी गंभीरता को देखते हुए इसे एक बड़ी रणनीतिक साझेदारी माना जाना चाहिए।

खलीलजाद ने कुछ सवाल भी उठाए:

  • क्या यह समझौता कतर में इजराइल के हमले के जवाब में किया गया है?
  • या फिर यह उन पुरानी अफवाहों की पुष्टि करता है कि सऊदी अरब, पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम का एक अघोषित सहयोगी रहा है?
  • क्या इस समझौते में कोई गुप्त खंड हैं? यदि हैं, तो वे क्या हैं?
  • क्या यह समझौता दिखाता है कि सऊदी अरब अब अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर पूरी तरह से निर्भर नहीं रहना चाहता?

उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार और ऐसी मिसाइल प्रणालियाँ हैं जो पूरे मध्य पूर्व और इजराइल तक पहुँच सकती हैं। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान ऐसे हथियार भी विकसित कर रहा है जो अमेरिका तक मार कर सकते हैं।

पाकिस्तान और अमेरिका का पुराना रक्षा समझौता

पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ हाल ही में किए गए समझौते जैसा ही एक रक्षा समझौता अमेरिका के साथ भी किया था। यह समझौता 1979 में समाप्त हो गया था। इस समझौते के लागू रहने के दौरान, भारत और पाकिस्तान के बीच दो युद्ध हुए थे, लेकिन अमेरिका ने किसी भी युद्ध में सीधे तौर पर पाकिस्तान की मदद नहीं की।

पाकिस्तान-अमेरिका का पुराना रक्षा समझौता: एक अवलोकन

  • कोल्ड वॉर के दौरान (1950s): शीत युद्ध के समय, अमेरिका ने सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के लिए दक्षिण एशिया में सहयोगी की तलाश शुरू की। इसी दौरान पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ एक सैन्य गठबंधन बनाया।
  • म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (MDAA), 19 मई 1954: यह पाकिस्तान और अमेरिका के बीच एक द्विपक्षीय समझौता था। इसमें आपसी रक्षा के नियम थे, जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे को सैन्य सहायता (हथियार, प्रशिक्षण, और उपकरण) प्रदान करेंगे। अमेरिका ने पाकिस्तान को सामूहिक सुरक्षा प्रयासों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें पाकिस्तान के संसाधन, सैनिक और रणनीतिक सुविधाएं शामिल थीं। यह समझौता अमेरिका के म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एक्ट (1949) पर आधारित था।
  • SEATO (1954) और CENTO (1955): MDAA के बाद, पाकिस्तान ने साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (SEATO) और बगदाद पैक्ट (जो बाद में CENTो बन गया) में शामिल होकर इस गठबंधन को और मजबूत किया। इन संगठनों के प्रावधानों में यह कहा गया था कि किसी एक सदस्य पर हमला सभी पर हमला माना जाएगा, जैसा कि नाटो (NATO) में होता है। इन समझौतों के तहत, अमेरिका ने पाकिस्तान को 7,000 करोड़ रुपये से अधिक की सैन्य सहायता दी, जिसमें हथियार और प्रशिक्षण शामिल थे।

    1979 में पाकिस्तान-अमेरिका का रक्षा समझौता क्यों टूटा?

    1979 में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रक्षा समझौता टूटने के कई प्रमुख कारण थे:

  • ईरान की क्रांति और CENTO का विघटन: 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद, वहाँ के शाह का शासन समाप्त हो गया। इसके बाद, ईरान ने 15 मार्च 1979 को सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (CENTO) से बाहर निकलने का फैसला किया। ईरान इस संगठन का एक महत्वपूर्ण सदस्य था, जिसके हटने से CENTO कमजोर पड़ गया।
  • पाकिस्तान की वापसी: ईरान के फैसले के कुछ ही दिनों बाद, 12 मार्च 1979 को पाकिस्तान ने भी CENTO छोड़ दिया। पाकिस्तान की इस वापसी के कई कारण थे, जैसे दिसंबर 1979 में सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद अपनी विदेश नीति को गुटनिरपेक्ष बनाना, और अमेरिका के साथ संबंधों में आए उतार-चढ़ाव।
  • अमेरिकी सहायता पर प्रतिबंध: अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर के प्रशासन ने 1979 में पाकिस्तान के गुप्त यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम (परमाणु हथियार कार्यक्रम) के कारण उस पर सैन्य सहायता से संबंधित प्रतिबंध लगा दिए। इन प्रतिबंधों ने प्रभावी रूप से दोनों देशों के बीच गठबंधन को समाप्त कर दिया।

    समझौते के बावजूद अमेरिका ने मदद क्यों नहीं दी?

    हालांकि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (MDAA) था, लेकिन 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों में अमेरिका ने सीधे तौर पर पाकिस्तान की सैन्य मदद नहीं की। इसके मुख्य कारण थे:

  • समझौते का उद्देश्य: MDAA, SEATO, और CENTO जैसे समझौते मुख्य रूप से सोवियत संघ या कम्युनिस्ट खतरों का मुकाबला करने के लिए बनाए गए थे, न कि भारत या किसी अन्य क्षेत्रीय देश के खिलाफ।
  • क्षेत्रीय विवाद: अमेरिका ने इन युद्धों को सामूहिक रक्षा का मामला मानने के बजाय क्षेत्रीय विवाद माना। इस कारण पाकिस्तान को उम्मीद के मुताबिक मदद नहीं मिली, जिससे इस गठबंधन की उपयोगिता पर सवाल उठने लगे।

     


Share: