वक्फ कानून के 3 बदलावों पर रोक: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम पर पूरी तरह से रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण बदलावों पर अस्थाई रोक लगा दी है।
- गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: कोर्ट ने आदेश दिया कि केंद्रीय वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या 4 से अधिक नहीं होनी चाहिए, और राज्य वक्फ बोर्ड में यह संख्या 3 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
- सरकारी सदस्यों की नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी है कि बोर्ड में नियुक्त किए जाने वाले सरकारी सदस्य मुस्लिम समुदाय से ही हों, यदि संभव हो।
अंतिम निर्णय लंबित: यह स्थगन (स्टे) तब तक लागू रहेगा, जब तक कि इस मामले पर अंतिम फैसला नहीं आ जाता।
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) कानून पर कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को मुसलमानों के अधिकारों के खिलाफ बताते हुए इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी। वहीं, केंद्र सरकार ने कानून के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किए थे।
कोर्ट ने इस मामले में कुल 5 मुख्य याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें से एक याचिका AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने दायर की थी। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने की। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने पैरवी की थी।
तीन दिनों की सुनवाई का सारांश
22 मई: केंद्र ने बताया सेक्शन 3E का मकसद
सुनवाई के तीसरे दिन, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने सेक्शन 3E का उल्लेख किया। उन्होंने तर्क दिया कि यह प्रावधान अनुसूचित क्षेत्रों में वक्फ के निर्माण पर रोक लगाता है, जिसका उद्देश्य अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा करना है।
इसके जवाब में, कपिल सिब्बल ने कहा कि नया कानून ऐतिहासिक और संवैधानिक सिद्धांतों की अनदेखी करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार गैर-न्यायिक प्रक्रिया का उपयोग करके वक्फ संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है।
20 मई: कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से मांगे मजबूत तर्क
पहले दिन की सुनवाई में बेंच ने मुस्लिम पक्ष से कहा कि अगर वे अंतरिम राहत चाहते हैं, तो उन्हें अपने तर्कों को और अधिक मजबूत और स्पष्ट करना होगा। याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में आने वाली कोई भी संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं हो सकती।
21 मई: वक्फ बाय यूजर मौलिक अधिकार नहीं - केंद्र
दूसरे दिन, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की दलीलें सुनीं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि 'वक्फ बाय यूजर' कोई मौलिक अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि यह अधिकार 1954 में विधायी नीति के तहत दिया गया था, और संविधान के अनुसार इसे वापस लिया जा सकता है। मेहता ने स्पष्ट किया कि सरकार ने यह अधिकार वापस ले लिया है।