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जो अलग हो गए, उन्हें फिर से जोड़ेंग

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इंदौर में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया ‘परिक्रमा कृपा सार’ का विमोचन

इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को ‘परिक्रमा कृपा सार’ पुस्तक का विमोचन किया। इस दौरान उन्होंने नर्मदा परिक्रमा की महत्ता पर प्रकाश डाला और भारतीय दर्शन, अर्थवेद तथा जीवन जीने की कला पर अपने विचार साझा किए। भागवत ने वर्तमान समय की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए अखंड भारत की आवश्यकता और महत्व पर भी जोर दिया।

सनातन परंपरा के हज़ारों वर्षों के गौरवपूर्ण इतिहास का उल्लेख करते हुए यह भी कहा गया कि बीते दो सहस्राब्दियों में विश्व में फैली विभिन्न विचारधाराओं के कारण इसके पतन की स्थितियां भी सामने आईं। वक्तव्य में बताया गया कि भक्ति, ज्ञान और कर्म का संतुलित मार्ग ही भारतीय समाज की सबसे बड़ी ताकत है। इसी आधार पर आज भी देश अपनी विशेष पहचान बनाए हुए है और अनेक भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए निरंतर प्रगति कर रहा है।

समारोह में संबोधन के दौरान वक्ता ने कहा कि यह ज्ञान हमें हमारे गुरुओं से प्राप्त हुआ है। लगभग 45 मिनट के उद्बोधन में उन्होंने उल्लेख किया कि भारत ने विश्व पर जो प्रभाव छोड़ा, उसके पीछे की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है। भारत ने न तो किसी देश पर अधिकार जमाकर नेतृत्व किया, न ही किसी का व्यापार छीनकर या धर्मांतरण करके अपनी पहचान बनाई। जहां भी भारतीय संस्कृति पहुँची, वहाँ जीवन स्तर को ऊँचा उठाने और सकारात्मक योगदान देने का ही कार्य किया गया।

पिछले दो हजार वर्षों में आई विकृतियों पर चिंता व्यक्त

कार्यक्रम में वक्ता ने कहा कि बीते दो सहस्राब्दियों में अनेक विकृतियां सामने आई हैं। पहले हर राष्ट्र की अपनी विशिष्ट पहचान और आपसी संवाद की परंपरा थी, लेकिन आज यह स्थिति कम होती जा रही है। विज्ञान और तकनीकी विकास से मनुष्य ने बड़ी प्रगति की है, परंतु इसके साथ ही पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा और पारिवारिक ढांचा भी कमजोर हुआ।

वक्तव्य में कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं को अलग पहचान के रूप में देखता है, तो उसके विचारों को दबाने के बजाय समझने की आवश्यकता है। पिछले दो हजार वर्षों में समाज में अनेक प्रकार के प्रयोग और बदलाव सामने आए हैं, जिनसे मानव जीवन और सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

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