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नॉन-क्लिनिकल रेजिडेंट डॉक्टरों की होगी नियुक्ति

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मेडिकल कॉलेजों में नॉन-क्लीनिकल विषयों के डॉक्टर भी बनेंगे सीनियर रेजिडेंट

अब तक मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों की नियुक्ति केवल क्लीनिकल विषयों जैसे मेडिसिन, सर्जरी, हड्डी रोग और गायनी में होती थी। लेकिन अब राज्य सरकार ने इस व्यवस्था को और व्यापक बनाने का निर्णय लिया है। नई योजना के तहत एनाटॉमी, फिज़ियोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री और फार्माकोलॉजी जैसे नॉन-क्लीनिकल विषयों के डॉक्टरों को भी सीनियर रेजिडेंट पद पर अवसर मिलेगा। इस बदलाव से जहां मरीजों को बेहतर इलाज और परामर्श का लाभ मिलेगा, वहीं डॉक्टरों को भी शैक्षणिक और व्यावहारिक अनुभव हासिल करने का मौका मिलेगा। 

सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 380 नए पदों का प्रस्ताव तैयार

राज्य सरकार ने संकेत दिए हैं कि जल्द ही कैबिनेट बैठक में सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए सीनियर रेजिडेंट के 380 पदों को स्वीकृति दी जाएगी। नई व्यवस्था के तहत नॉन-क्लीनिकल सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों की सेवाओं का उपयोग अस्पतालों की ओपीडी, आपातकालीन ड्यूटी और अन्य विभागों में किया जा सकेगा। सरकार का मानना है कि इससे मरीजों को समय पर बेहतर सुविधा मिलेगी और चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था भी मजबूत होगी।

एनएमसी के निर्देश पर प्रदेश में 380 नॉन-क्लीनिकल सीनियर रेजिडेंट पद सृजित होंगे

नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने नॉन-क्लीनिकल विषयों में भी सीनियर रेजिडेंट नियुक्त करने के निर्देश दिए हैं। तय नियमों के अनुसार, इन पदों की संख्या फैकल्टी के कुल स्वीकृत पदों के निश्चित अनुपात में रखी जाएगी। इसी आधार पर मध्यप्रदेश में 380 पद सृजित किए जा रहे हैं, जिन्हें राज्य के 19 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भरा जाएगा। सरकार का मानना है कि इस कदम से चिकित्सा शिक्षा के साथ-साथ अस्पतालों की सेवाओं को भी मजबूती मिलेगी।

एसआर से असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का रास्ता आसान

मेडिकल कॉलेजों में सीनियर रेजिडेंट के रूप में कार्य करने वालों को आगे चलकर उसी संस्थान में सहायक प्राध्यापक बनने का अवसर भी मिल सकता है। नियमों के मुताबिक, सहायक प्राध्यापक पद के लिए उम्मीदवार का कम से कम तीन साल तक सीनियर रेजिडेंट रहना आवश्यक है। राज्य सरकार इन पदों पर कार्यरत डॉक्टरों को निर्धारित मानदेय प्रदान करती है


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